मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
चीर हरण के समय, तूने द्रौपदी की लाज बचाई
इन बच्चियों की चीख, फिर क्यों न दी सुनाई ?
इंसान पतन की ओर, पर तू क्यों पथरा रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
धर्म की हानि होने पर, अवतार लेने की कसम
क्या भूल गया भारत की, पाप-मुक्ति की रसम
तेरी इस धरा पर अधर्म, का चरम पार हो रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
बस! अब और नहीं, ऐसा कुछ भी सहा जाता
राधा-मीरा न सही, गोपियों से भी तो था नाता
उसी नाते की लाज रखने में, क्यों देर हो रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
बांसुरी की तान में यूँ, तुम सुध बुध भूलो मत
खोखली जमीन पर उगे, कदम्ब पर झूलो मत
उठाओ चक्र और दिखादो, पाप नाश हो रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
-उषा तनेजा